यादव समाज के ज्यादातर लोग अपने बारे में कुछ नहीं जानते है और न ही अपना सही इतिहास जानते है। कुछ लोग अपने आप को ऊंची जाति का मान लेते है और बाकियों से श्रेष्ठ मान लेते है तो कुछ अपने आप को क्षत्रिय मान लेते है तो कुछ कृष्ण के वंशज मान लेते है । लेकिन ब्राह्मण धर्म के वेद, स्मृतियां, ग्रंथ, रामायण, विदेशी यात्रियों के नोट्स और पुरातात्विक प्रमाण कुछ और ही कहते हैं । मैं "पंकज ध्वज" तथ्यों के साथ इस विषय पर बहुत दुर्लभ जानकारियां इक्कठा किया हूं।
मनुस्मृति, अध्याय 1 का श्लोक 91 शुद्र के कर्म दिए गए है शुद्र को पढ़ने लिखने का अधिकार नहीं होता था । जो यादव पे फिट बैठता है क्योंकि अंग्रेजों के आने से पहले यादव पढ़े लिखे नहीं होते थे । मतलब यादव शुद्र है।
मनुस्मृति, अध्याय 2 का 37 श्लोक में उपनयन संस्कार के उम्र का जिक्र है । उसमे ब्रह्मतेजाभिलाषी ब्राह्मण का गर्भ से 5 वर्ष में, बालाभिलाषी क्षत्रिय का 6 वर्ष में और धनाभिलाषी वैश्य का 8 वर्ष में उपनयन संस्कार करना चाहिए । लेकिन ग्वाला समाज में ये उपनयन प्रक्रिया बचपन में नहीं होती है, मतलब यादव शुद्र है।
वाल्मिकी रामायण, युद्धकांड, सर्ग 22 श्लोक 33 से 39
राम जब समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठाता है तो समुद्र आदमी के रूप में प्रगट होता है और समुद्र कहता है की आप वाण प्रत्यांचा पे चढ़ा ही लिए हो तो वहां आभीर (यादव) आदि निवास करते है जिसके रूप और कर्म बहुत भयानक है, वे पापी है, वे सब मेरा जल पी कर दूषित कर देते है। इनका स्पर्श मैं नहीं सह सकता । आप अपने इस वाण को वहीं सफल करें । और राम वाण चला कर मरुस्थल बना देता है और अभीरों आदि को नष्ट देता है ।
तुलसीदास की रामचरितमानस, उतरकांड, सर्ग 129 के छंद 1 में आभीर (यादव), चंडाल आदि को अत्यंत पाप रूपी बताया है।
व्यास स्मृति, अध्याय 1 के 11 से 13 श्लोक में ग्वाला (यादव), नाई, कुम्हार, बढ़ई, चमार, धोबी, चंडाल समेत बहुत सारी जातियों को अंत्यज कहा गया है । इनमे से एक पे भी दृष्टि पड़ जाए तो सूर्य की ओर देखना चाहिए । अगर बात हो जाए तो स्नान करना चाहिए तभी द्विज (ऊंची जाति के व्यक्ति) शुद्ध हो पता है ।
ऋग्वेद (वेदांत तीर्थ भाष्य), मंडल 1 का 101 सूक्त के 1 मंत्र में लिखा है
हे ऋषिगण इंद्र कि हवि द्वारा स्तुति करो। ऋजिश्वा के सहयोग से, "कृष्णासुर" की गर्भिणी स्त्रियों के साथ उसका संहार करने वाले, दाएं हाथ में बज्र धारण करने वाले, मरूतों की सेना के साथ स्थित रहने वाले, बल संपन्न उस इंद्र कि कामना करने वाले इंद्र का हम याजक मित्रभाव से हम आवाह्न करते है ।
यानि यहां साफ साफ कृष्ण को असुर बताया गया है।
ऋग्वेद, मंडल 8 का 96 सूक्त के 13 से 17 मंत्र में "कृष्णासूर" को दस हजार सेना सहित इंद्र ने बृहस्पति की सहायता से पराजित करके की निर्मम हत्या कर देता है।
इन सारे मंत्रों से स्पष्ट है की वेदों में कृष्ण असुर है ।
इसलिए 16 वी सदी में ग्वाला सूरदास को कृष्ण की भक्ति का अधिकार था और ब्राह्मणों को कोई आपत्ति भी नहीं हुई क्योंकि वेदों के अनुसार तो कृष्ण असुर था, लेकिन सूरदास का कृष्ण किशोरावस्था तक ही था और एक ग्वाला था । जबकि व्यास का कृष्ण क्षत्रिय था ।
बाद में दोनो को जोड़ दिया गया ।
कृष्ण की जितनी भी किशोरावस्था की कहानी है वो सब सूरदास की रचना सुरसागर और सूरसारावली से आई है।
जब कृष्ण काल्पनिक है तो यादवों का असली इतिहास क्या है ??
310 ईसा पूर्व मेगास्थनीज ने अपने इंडिका में भारतीयों को 7 पार्ट में बांट कर दिखाया है ।
1. विद्वान वर्ग 2. कृषक वर्ग 3. पशुपालक वर्ग (चरवाहा) 4. कारीगर वर्ग 5. सैनिक वर्ग 6. दुकानदार वर्ग 7. गरीब वर्ग
उन्होंने ये भी लिखा की बाकी के वर्ग पशुपालक और कृषक वर्ग का बहुत इज्जत किया करते था । उस समय कोई जाति व्यवस्था या भेदभाव नहीं थी और सभी का आदर किया जाता था।
यानि चंद्रगुप्त मौर्य कालीन एक पशुपालक वर्ग भी मौजूद था।
लॉरेंस वाडेल ने 19 वी सदी के आखिरी दशक में पटना के भिखना पहाड़ी को देखने गए और जांच किए और अपनी पुस्तक "डिस्कवरी ऑफ द एक्जैक्ट साइट ऑफ अशोकाज क्लासिक कैपिटल ऑफ पाटलिपुत्र" (1892) में लिखे की सचमुच यह एक कृत्रिम पहाड़ी है, कोई 40 फीट ऊंची है और 1 मील के घेरे में है । और वहां पे कुछ लोग पूजा करने जाते थे , उन लोगों में दुसाध, ग्वाल (अहिर) थे।
ये लोग दूध, मिठाई, फल, फुल, रेशम धागे आदि से "भिखना कुंवर" (अर्थात राजकुमार महेंद्र (पाली में महिंद) सम्राट असोक के पुत्र) की पूजा करते थे और उनको अपना आराध्य मानते थे । इसके बारे में चीनी यात्री फाह्यान और भाषा वैज्ञानिक राजेंद्र प्रसाद सिंह भी अपने पुस्तक "सम्राट अशोक नया परिपेक्ष" में लिखे है।
मम्मलापुरम में 10 वी सदी का एक शिला चित्र मिला है जिसका जिक्र डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सिंह अपने पुस्तक "खोए हुए बुद्ध की खोज" में की है जिसमें बुद्ध जैसी आकृति गाय का दूध निकल रहे है।
21 वी सदी के प्रथम दशक में मिट्टी के टिल्ले की खुदाई से सुजाता का स्तूप मिला है और आठवीं सदी के एक अभिलेख से इस स्पूत का सत्यापन हुआ है जिसमें लिखा है की यह सुजाता गृह है । यह वही सुजाता है जिसके बारे में कहा गया है जब गौतम बुद्ध भूखे प्यासे उपासना कर रहे थे तो उन्हें खाना खिला कर उनकी जान बचाई थी । और ये सुजाता ग्वाला थी जिसके याद में विशाल स्तूप बनवाया गया है । इस उत्खनन प्रमाण का सत्यापन भी ह्वेनसांग ने सातवीं सदी में किया है ।
ह्वेनसांग की भारत यात्रा (सम्यक प्रकाशन), पेज 240
7 वीं सदी में वकायदे ह्वेनसांग ये लिख के जा रहे है की सुजाता ग्वाला पुत्री थी
ये सब बातों, तथ्यों, प्रमाणों को ध्यान से देखा जाए तो हमें तीन बातें देखने को मिलती है की
1. यादव (ग्वाला) समाज का कनेक्शन कहीं न कहीं बुद्धिस्ट साम्राज्य से है, ये राजकुमार महिंद को अपना आराध्य मानते थे बीसवीं सदी तक।
2. उत्खनन प्रमाण भी मिल रहे है जिससे ये पता चल रहा है की पशुपालक वर्ग में बुद्धिस्ट भी थे ।
3. ब्रह्मणवादियों ने अपनी सारी किताबें बौद्ध विरोध में लिखी है इसलिए यादवों को अपने धार्मिक ग्रंथों, पुस्तकों में इतना नीचा, पापी, अंत्यज दिखाया है ।
तो इन सारे तथ्यों से साफ होता है की यादव (ग्वाला) समाज भी भारत का मूल समाज था जो सम्यक संस्कृति से तालुकात रखता था और आज के वर्तमान समय में अपना इतिहास ना जानने के कारण ब्रह्मणवादियों के चंगुल में फंसते जा रहा है।
आज यादव समाज का जो सुधार और विकास हो पा रहा है उसका सबसे बड़ा कारण है संविधान । क्योंकि अब यादव पढ़ने लिखने लगे है । हक के लिए लड़ने लगे है । पाखंड को समझने लगे हैं । लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव जैसे नेताओं के वजह से भी यादव समाज का सशक्तिकरण हुआ। बी पी मंडल का मंडल कमीशन के सिफारिशों से कुछ आरक्षण मिल पाया । पाखंड के विरोध में उत्तर भारत के परियार ललई सिंह यादव ने मुकदमा संख्या 291/1971 जीतकर यूपी सरकार से सच्ची रामायण (रामायण के पाखंड उजागर करने वाली पुस्तक) की जप्त प्रतियां लौटाने को मजबूर किया था थी और सच्ची रामायण से बैन हटवाया था।
ऐसे बहुत सारे तथ्य है जिसे एक पोस्ट में लिखना संभव नहीं है ।
यादव समाज को इस घृणित, जातिवाद, ऊंचनिच, भेदभाव आदि से भरे ब्राह्मणवादी समाज को छोड़ कर सम्यक संस्कृति में वापस लौटना चाहिए जहां हमारे पूर्वज थे। ये काल्पनिक देवी देवताओं, कर्मकांड और पूजा पाठ से सिर्फ पोंगा पण्डो का ही विकास हो सकता है आपका नहीं।
भारत बुद्ध काल में विश्वगुरु था । चीन, अमेरिका जैसे विकसित देशों के छात्र भारत पढ़ने आते थे । बुद्ध भारत से निकल कर पूरे विश्व में फैल गए लेकिन भारत में ही उनका उतना प्रभाव नहीं है ।
कोई मोटरसाइकिल में अगर अशोक चक्र रहता है तो लोग कहते है की ये व्यक्ति बुद्धिस्ट है।
कोई कार में अगर अशोक चक्र रहता है तो लोग कहते है की पूरा परिवार ही बुद्धिस्ट है।
भारत देश के झंडे में ही अशोक चक्र है तो अब मानना पड़ेगा कि भारत देश ही बुद्धिस्ट है।
Atheism + Morality = Budhhism